
कोल ट्रांसपोर्ट का तांडव : लापरवाह एनसीएल प्रबंधन, बेपरवाह प्रशासन और बेबस जनता। सड़क मार्ग से कोल ट्रांसपोर्ट के कारण ऊर्जांचल व ऊर्जाधानी की आबोहवा में जहर घुल रहा है। कोयले की धूल के गुबार के कारण लोगों की जिंदगी नारकीय हो रही है। सिंगरौली से लेकर अनपरा तक जिधर भी नजर डालिए उधर कोयले की धूल ही धूल नजर आएगी। अनियंत्रित स्पीड से मुख्य मार्ग पर फर्राटा भरते कोयला परिवहन के दैत्यनुमा ट्रेलर की चपेट में आकर लोगों की जिंदगी समाप्त हो रही है और कोयले की धूल से धीरे धीरे आम जनता की सांसो में जहर घुल रहा है। जिसके भयंकर परिणाम निकट भविष्य में दिखाई देंगे।

सड़क मार्ग से कोल ट्रांसपोर्ट के कारण आए दिन ऊर्जांचल में लगने वाला भीषण जाम लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। जनता के सरोकार के मुद्दे पर विवेक शून्य हो चुका एनसीएल प्रबंधन के कान पर जूं तक नहीं रेंगता। शक्तिनगर थाना क्षेत्र के एनसीएल दुद्धीचुआ परियोजना से होने वाली सड़क मार्ग से कोयला परिवहन के कारण भयंकर प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है। आए दिन घंटो जाम की समस्या से आम जनता का जीवन प्रभावित हो रहा है और कोयले की धूल से होने वाली प्रदूषण के कारण आम जनमानस का जीवन तबाही की ओर है।

आंबेडकर नगर की 10 हजार की आबादी भयंकर प्रदूषण की चपेट में – एनसीएल खड़िया परियोजना की पुनर्वास गांव अंबेडकरनगर की 10 हजार की आबादी सड़क मार्ग से हो रहे कोयला परिवहन की गाड़ियों के कारण भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहा है। गांव से बाहर जाने का एकमात्र रास्ता शक्तिनगर जयंत मुख्य मार्ग के दोनों किनारे ट्रक-ट्रेलरों की लंबी कतारें लगने के कारण ग्रामीणों का गांव से बाहर जाने का मतलब, मौत के रास्तों से होकर गुजरना है। ग्रामीणों द्वारा पूर्व में किए तमाम धरना प्रदर्शन के बावजूद एनसीएल दुद्धीचुआ परियोजना से सिर्फ आश्वासन मिला और कुछ दिन के पानी छिड़काव के बाद स्थिति जस की तस बनी हुई है। कोयला परिवहन की गाड़ियों के कारण धूल के बवंडर के बीच आंबेडकर नगर के निवासी भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहे हैं।
एसडीएम व क्षेत्राधिकारी भी नहीं निकाल पाए समस्या का समाधान – कोयला परिवहन की गाड़ियों से हो रही प्रदूषण की समस्या व आए दिन लगने वाले जाम की शिकायत पर गंभीरता दिखाते हुए समस्या का हल निकालने हेतु दुद्धी एसडीएम शैलेंद्र मिश्रा, पिपरी क्षेत्राधिकारी प्रदीप सिंह चंदेल और तहसीलदार ने एनसीएल आला अधिकारियों के साथ वातानुकूलित कमरों में बैठक करने के उपरांत दुद्धीचुआ खदान मोड़ पहुंचकर मौका मुआयना भी किया। ग्रामीणों से वार्ता के बाद एसडीएम शैलेंद्र मिश्रा ने आश्वासन दिया कि तीन-चार दिनों के अंदर गाड़ियां मुख्य मार्ग पर खड़ी नहीं होगी। लेकिन एसडीएम व क्षेत्राधिकारी के निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए ट्रांसपोर्टर अपनी गाड़ियों को कोल परिवहन के लिए मुख्य मार्ग पर ही खड़ी कर रहे हैं। आंबेडकर नगर ग्रामीणों का कहना है कि एसडीएम और क्षेत्राधिकारी के दौरे के बाद स्थिति और बदतर हो गई है।

ट्रांसपोर्टरों की दलील, रोड टैक्स देते हैं तो गाड़ी रोड पर ही खड़ी होगी – शक्तिनगर जयंत मुख्य मार्ग पर दोनों तरफ कोयला परिवहन की गाड़ियां खड़ी करने के कारण ग्रामीणों का मुख्य मार्ग पर जाना दूभर हो गया है। जब कभी ग्रामीण इसका विरोध करते हैं तो दर्जनों की संख्या में गाड़ियों से भर कर आए ट्रांसपोर्टर लड़ने पर उतारू होते हुए दलील देते हैं कि जब रोड टैक्स देते हैं तो गाड़ियां की रोड पर ही खड़ी होगी। ट्रांसपोर्टर 2 ग्रामीणों को यह भी कह देते हैं कि बहुत दिक्कत है दो जाकर थाना में शिकायत करो। ऐसे में प्रशासन की बेरुखी से बेचारी जनता बेबस नज़र आती है।
राष्ट्रहित के लिए जनहित का गला घोटना कितना जायज – बिजली घरों में कोयले के संकट की बात कह कर सड़क मार्ग से कोयला परिवहन किया जा रहा है। हर आम जनमानस राष्ट्रहित के कार्यों में कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है। लेकिन यह कहां तक जायज है कि राष्ट्रहित के नाम पर जनहित के मुद्दों का गला घोट दिया जाए। राष्ट्रहित के नाम पर कोयला परिवहन कर रहे ट्रक-ट्रेलरों के कारण 10 हजार की आबादी को भयंकर प्रदूषण की चपेट में झोंक कर मौत के रास्ते पर धकेला जा रहा है। आंबेडकर नगर ग्रामीणों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। एनसीएल द्वारा विस्थापित गांव अनाथ पड़ा हुआ है और प्रदूषण से परेशान ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
अंधेर नगरी चौपट राजा जैसी स्थिति – ऊर्जांचल की स्थिति “अंधेर नगरी चौपट राजा” जैसी हो गई है। अपनी जमीनों को कोयला खदान के लिए देने वाली जनता, कोयले की खदान से होने वाली प्रदूषण की भयंकर मार झेल रही है। विस्थापन नीति के अनुसार विस्थापितों को लाभ नहीं मिल रहा है और मूलभूत समस्याओं के लिए भी आम विस्थापित दर-दर भटकने को मजबूर है। कोयला परिवहन की गाड़ियों से आए दिन लगने वाले जाम व प्रदूषण की समस्या से परेशान ग्रामीणों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। एनसीएल प्रबंधन “अपनी डफली, अपना राग” बजाने में व्यस्त है। वहीं स्थानीय प्रशासन बिजली घरों में कोयला संकट की बात कह कर कन्नी काटने में मशगूल है। वातानुकूलित कमरों व गाड़ियों में घूमने वाले अधिकारियों को उड़ती धूल नजर नहीं आती।
